श्रवण कुमार ‘शाश्वत’ की कविता…
Sahitya Manch हथेलियां सिकुड़ती हैं रोटी की खातिर,फफोले निकलते हैं बेटी की खातिर।बढ़ता हूँ आगे फिर मुड़ जाता हूँ,बिखड़ता हूँ ...
Sahitya Manch हथेलियां सिकुड़ती हैं रोटी की खातिर,फफोले निकलते हैं बेटी की खातिर।बढ़ता हूँ आगे फिर मुड़ जाता हूँ,बिखड़ता हूँ ...
Sahitya Manch : गौतम गोरखपुरी की ग़ज़लें ग़ज़ल_1कोई भी नहीं है हमारा सिवा इन किताबों केमेरी ज़िन्दगी का सहारा सिवा ...
Sahitya manch साहित्य मंच - धीरज तिवारी के गीत गीत_1 हाय इस निर्मम धरा परदौड़ता दिन रात रे मन ! ...