Rose Day Special
निकल गुलाब की मुट्ठी से और खुशबू बन
मैं भागता हूँ तिरे पीछे और तू जुगनू बन
जावेद अनवर !
गुलाबों का इंतजाम न हो पाने के कारण इस बार ये सस्ता रोमियो गुब्बारों के बीच बैठ कर फोटो पोस्ट कर रहा है!
वैसे गुलाबों से भी कोई खास फर्क पड़ता नहीं है। जिसको मानना होगा है, जिंदगी में आना होगा है वो लाल गुलाब का वेट नहीं करेगा। वो तो चंपा-चमेली-शैफाली-कनेर किसी से भी मान जाएगा।
. . .और जो आपके लिए नहीं बना उस पर हजारो गुलाब न्योछावर करना भी बेकार होगा!
2014 में मेरे एक दोस्त ने सुंदर से गुलाब लिए और सोचा कि आज कोचिंग के बाद प्रपोज कर ही देना है पर प्रपोज करना एक बात है और प्रपोजल एक्सेप्ट होना एकदम दूसरी! दूसरी बात में मेरा दोस्त लकी नहीं था। हमारे पूरे ग्रुप का लक नहीं चलता इस मामले में। गुलाबों को उल्टा लटकाए वो वापस आ रहा था। वो हम तक आ भी नहीं पाया था कि बीच में ही कोचिंग की एक दूसरी लड़की ने उससे वो गुलाब मांगे ,क्यों मांगे शायद ये स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है ! पर उसने वो गुलाब उसे नहीं दिये । क्यों नहीं दिये ये भी स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है। मुझे ठीक उसी समय समझ आया कि प्रेम-त्रिकोण कैसे बनते हैं ।
. . . तब तक हम सबको यही लगता था कि गुलाब देकर किसी को मनाया जा सकता है,रिझाया जा सकता है , अपना बनाया जा सकता है पर उस दिन हमें गुलाबों की हद पता चली, हैसियत पता चली!
और उसके बाद हम में से किसी ने कभी गुलाब नहीं खरीदें!
Roseday
एक तस्वीर जमाने भर की नेह-प्रेम-मुहब्बत के नाम