श्रवण कुमार ‘शाश्वत’ की कविता…
Sahitya Manch हथेलियां सिकुड़ती हैं रोटी की खातिर,फफोले निकलते हैं बेटी की खातिर।बढ़ता हूँ आगे फिर मुड़ जाता हूँ,बिखड़ता हूँ ...
Sahitya Manch हथेलियां सिकुड़ती हैं रोटी की खातिर,फफोले निकलते हैं बेटी की खातिर।बढ़ता हूँ आगे फिर मुड़ जाता हूँ,बिखड़ता हूँ ...
Sahitya Manch : गौतम गोरखपुरी की ग़ज़लें ग़ज़ल_1कोई भी नहीं है हमारा सिवा इन किताबों केमेरी ज़िन्दगी का सहारा सिवा ...
1.Mizaaj Dairy ज्यादातर वनस्पतियांजब पतझड़कीओर रुख़ करतीं हैंजंगलपलाश को थामेआगे बढ़ता है। मिज़ाज (द्वारा लिखित "उपन्यास रात के जूडे़ में ...
प्रस्तुत रचना लेखक की प्रसिद्ध रचना ''रात के जूड़े में पलाश के फूल " का एक छोटा सा अंश है। ...