विश्व ब्रेल दिवस (World Braille Day) क्यों मनाते हैं?
विश्व ब्रेल दिवस 4 जनवरी फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल की याद में बनाया जाता है लुइस ब्रेल ने ब्रेल लिपि के माध्यम से विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने का एक मौका दिया। जब लूई के जन्म के 200 साल पूरे हुए थे तब भारत सरकार ने 4 जनवरी 2009 को इनका ‘डाक टिकट भी जारी किया था।
ब्रेल के काम को उचित सम्मान नहीं मिला लेकिन 6 जनवरी 1852 को मात्र,43 वर्ष की उम्र में उनके मृत्यु के बाद लोगो ने उनके कामों को सराहा और मृत्यु के 16 वर्ष बाद 1868 ईसवी Royal institute for blind youth ने इस लिपि को मान्यता दी। उनके सम्मान में उन्हें सयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा पहली बार 4 जनवरी 2019 को विश्व ब्रेल दिवस (World Braille day ) रूप में अनुमोदित किया गया।
इस दिन दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, नेत्र रोगों की पहचान, रोकथाम और पुनर्वास विषय पर बातें होती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक विश्व भर में तकरीबन 40 मिलियन लोग नहीं देख सकती जबकि 253 मिलियन लोगों में कोई न कोई दृष्टि विकार है विश्व ब्रेल दिवस का मुख्य उद्देश्य ब्रेल लिपि को बढ़ावा देना और यह दिन दृष्टि बाधित और दृष्टि-विहीन लोगों के लिए मानवाधिकार हासिल करने में संचार के साधन के रूप में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है |
शिक्षा, अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, साथ ही सामाजिक समावेश के संदर्भ में ब्रेल लिपि को आवश्यक माना जाता है, जैसा कि विकलांग( दिव्यांग ) व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन के अनुच्छेद 2 में विदित है।
कौन थे लुइस ब्रेल (Who was Louis Braille)?-
‘ब्रेल लिपि’ के आविष्कारक” लुई ब्रेल” को दृष्टि बाधित लोगों का मसीहा कहा जाता है | लुई ब्रेल का जन्म उत्तरी फ्रांस के एक छोटी से कस्बे कुप्रे में 4 जनवरी सन् 1809 ईस्वी में हुआ था लुई ब्रेल जन्मजात अंधे नहीं थे उन्होंने एक दुर्घटना में 3 साल की उम्र में ही अपनी आंखें खो दी थी लुई ब्रेल के पिता ‘साइमन रेले ब्रेल’ शाही घोड़ों की काठी बनाने का काम किया करते थे पारिवारिक जरूरतों और आर्थिक संसाधनों के सीमित होने के कारण साइमन पर कार्य का अधिक भार रहता था
एक दिन ब्रेल अपने पिता के साथ काम कर रहे थे अचानक एक औजार से उनकी आंख में चोट लग गई जिससे उनकी आंखों से खून निकलने लगा परिवार के लोगों ने इसे मामूली चोट समझकर आंख पर पट्टी बांधी और इलाज करवाने में दिलचस्पी नहीं ली वक्त बीतने के साथ ब्रेल का घाव बढ़ता चला गया।8 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते ब्रेल की दुनिया में पूरी तरह सेअंधेरा छा गया था लेकिन ब्रेल ने हार नहीं मानी इस चुनौती का सामना किया
ब्रेल की परिवार ने एक पादरी की सहायता से फ्रांस की एक अंध विद्यालय( रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रन ) में उनका दाखिला करा दिया उस स्कूल में “वेलेंटीन होउ” द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाया जाता था। यह लिपि अधूरी थी। लुई ब्रेल 16 साल की उम्र में गणित भूगोल एवं इतिहास विषयों में अच्छी जानकारी प्राप्त कर वहां के शिक्षकों और छात्रों के बीच अपन एक स्थान बना लिया था
ब्रेल लिपि का इतिहास (History of Braille)-:
सन् 1821 में चार्ल्स बार्बिएर ने पेरिस में रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड का दौरा किया जहां उनकी मुलाकात लुई ब्रेल से हुई जिन्होंने सेना के लिए एक विशेष क्रिप्टोग्राफी विकसित की थी जो नेपोलियन की मांग की जवाब में सैनिकों के लिए रात में और बिना प्रकाश स्रोत के चुपचाप संवाद करने के लिए था
बार्बिएर की प्रणाली में 12 उभरे हुए डॉट्स के सेट थे जिनमे 36 अलग-अलग ध्वनियों को इनकोड किया गया था सैनिकों द्वारा इसे अंधेरे में पढ़ी जाने वाली ‘नाइट राइटिंग ‘या ‘सोनोग्राफी ‘ के बारे में व्याख्यान दिया गया।सैनिकों के लिए स्पर्श से पहचाना बहुत मुश्किल था जिससे सेना ने खारिज कर दिया लुई ब्रेल की मदद से कोड के तीन प्रमुख दोषों की पहचान की गई
पहला, प्रतीक ध्वन्यात्मक ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं न कि वर्णमाला के अक्षर इस प्रकार कोड शब्दो की शब्दावली प्रस्तुत करने में असमर्थ था।
दूसरा, 12 बिंदु वाले चिन्ह आसानी से पढ़ने वाली उंगली के पैड के नीचे आसानी से फिट नहीं हो सकते थे इसलिए पढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने वाले पूरे प्रतीक को समझने के लिए पढ़ने वाली उंगली को स्थानांतरित करने की आवश्यकता थी।
तीसरा कोड में अंको या विराम चिन्ह के प्रतीक शामिल नहीं थे चार्ल्स बार्बिएर द्वारा जिस लिपि का उल्लेख किया गया था उसमें 12 बिंदुओं को 6-6 दो पंक्तियों को रखा गया था उसमें संख्या गणिती चिन्ह और विराम चिन्ह का समावेश नहीं था लुई ने ब्रेल लिपि में 12 बिंदुओं की जगह 6 बिंदुओं का उपयोग 64 अक्षर और चिन्ह वाली लिपि बनाई उसमें न केवल विराम चिन्ह बल्कि गणितीय चिन्ह और संगीत के भी संकेत चिन्ह लिखे जा सकते थे
यह लिपि सन् 1824 में पूरी हो गई जो लगभग सभी देशों में उपयोग में लायी जाने लगी। ब्रेल ने सन् 1829 ब्रेल लिपि प्रकाशित की 8 साल बाद उनकी इस लिपि को एक बेहतर संस्करण प्रकाशित किया गया
ब्रेल लिपि की विशेषता व महत्व( Importance of braille )-
ब्रेल एक स्पर्शनीय लेखन प्रणाली है ब्रेल लैटिन वर्णमाला के 26 अक्षरो के लिए फ्रेंच सर्टिंग ऑर्डर का पालन करते है ,
ब्रेल में छोटे-छोटे बिंदुओ के उभार होते हैं जिन्हें ‘सेल’के नाम से जाना जाता है इसमें विराम चिन्ह गणितीय चिन्ह,संख्या, संगीत आदि 3*2 मैट्रिक्स में व्यवस्थित 6 बिंदुओं के माध्यम से दर्शाया जाता है प्रत्येक स्तंभ में 3 बिंदु होते हैं इन बिंदुओं की संख्या एक वर्ण को दूसरे वर्ण से अलग करती है
1•अनियंत्रित ब्रेल – साक्षरता के लिए प्रयोग किए जाने वाला अक्षर प्रतिलेखन,
2• अनुबंधित ब्रेल – अंतरिक्ष बचत तंत्र के रूप में प्रयोग किए जाने वाला संक्षेपो और संकुचनो का जोड़, ग्रेड
3 – विभिन्न गैर- मानकीकृत आशुलिपि आमतौर पर बहुत कम उपयोग की जाती है ब्रेल पाठ में उभरा हुआ चित्र और रेखांकन को बनाना आसान है जिनमें रेखाएं ठोस या बिंदुओं तीरों, गोलियों से बनी होती है ब्रेल लिपि को उभरा हुआ कागज पर पढ़ा जा सकता है या फिर कंप्यूटर या स्मार्टफोन कनेक्ट होने वाले रिफ्रैशेबल ब्रेल डिस्प्ले का उपयोग करके पढ़ा जा सकता है
64 अक्षरों वाले अलग-अलग आकारों में सेल की बाई पंक्ति में ऊपर से नीचे 1,2,3 बने होते हैं और इसी तरह दाई और 4,5,6 बनी होती है एक बिंदु की लगभग औसतन ऊंचाई 0.02इंच होती है
आज 133 से अधिक भाषाओं के लिए ब्रेल कोड का प्रयोग किया जाता है
अंग्रेजी भाषी दुनिया में ब्रेल कोड का उपयोग करने वाले 1991 में मानकीकृत करने का काम शुरू हुआ Unified English Braille (UEB) को International counselling on English Braille (ICEB) के साथ-साथ नाइजीरिया की सभी 7 सदस्य देशों ने ब्रेल लिपि को अपनाया नेत्रबाधित पाठकों के लिए ब्रेल एक स्वतंत्र लेखन प्रणाली है न कि मुद्रित शब्दावली का एक कोड।
इस लिपि में नेत्रबधित बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तकों की अतिरिक्त रामायण,महाभारत जैसे आदि ग्रंथ भी छपते हैं। रांची ऐसा पहला राज्य है जहां पर ब्रेल स्मार्ट क्लासेस का उद्घाटन हुआ।