साम्राज्यवाद (Imperialism)
साम्राज्यवाद (Imperialism) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1870 के दशक में ब्रिटेन की राजनीति में हुआ था, परंतु 19वीं सदी के अंत तक यूरोपीय लोगों के द्वारा खुलकर साम्राज्यवाद शब्द का प्रयोग होने लगा| इसके बाद इसे प्राचीन काल से भी जोड़ा गया और इसी क्रम में पुराने रोमन साम्राज्य,यूनानी साम्राज्य और मंगोल साम्राज्य की नीति को साम्राज्यवाद नाम दिया गया| परंतु जब हम इस समय साम्राज्यवाद की बात करते हैं तो इससे हमारा तात्पर्य उस साम्राज्य से है जिसका उदय पूंजीवाद के युग में हुआ।
साम्राज्यवाद क्या है ?
सबसे पहले सवाल उठता है कि साम्राज्यवाद क्या है ? साम्रज्यवाद के बदलते स्वरूप को देखते हुए इसे परिभाषित करना कठिन है। परंतु अनेक इतिहासकारों ने साम्राज्यवाद की परिभाषा वित्तीय पूंजी के रूप में की है। साम्राज्यवाद को विश्व अर्थव्यवस्था की एक विशेषता के रूप में देखा जाता है। पूजी संग्रह करना एक पूंजीपति कि सामान्य प्रवृत्ति होती है और साम्राज्यवादी विस्तार को वे ऐसा ही मानते है। इसी प्रकार Lenin ने साम्रज्यवाद को पूंजीवाद का एक चरम बिंदु बताया है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उस प्रक्रिया की ओर संकेत करता है, जिसके द्वारा पूंजीवादी देश अपना विस्तार उन क्षेत्रों में करते हैं जो पूंजीवादी नहीं होते है। साम्राज्यवाद में आर्थिक शोषण निहित है और इस शोषण की प्रक्रिया को पूंजीवादी व्यवस्था से बढ़ावा मिला।
अधिकांश लोग साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को एक समझ लेते है। परंतु जैसे Edward Said अपनी किताब “इंपिरियलिज्म एंड कल्चर” में बताते हैं कि साम्राज्यवाद एक प्रक्रिया है और उपनिवेशवाद एक व्यवस्था है। आगे वह बताते हैं कि साम्राज्यवाद में यह आवश्यक नहीं है कि जनता दूसरी जगह जाकर बसे परंतु उपनिवेशवाद में जनता को निर्गमन एक आवश्यक तत्व है। ये व्यक्ति अपने साथ अपनी आदतें जीवन पद्धति और शासन प्रणाली भी दूसरे प्रदेश में ले जाते हैं चाहे वह स्थान कम बसावट का हो अथवा बसावट रहित हों।
साम्राज्यवाद के तीन प्रमुख चरण है
साम्राज्यवाद के तीन प्रमुख चरण है
(A ) वाणिज्यिक तथा प्रारंभिक व्यापारिक साम्राज्यवाद
(B ) औद्योगिक पूंजीवाद तथा स्वतंत्र व्यापार का साम्राज्यवाद
(C ) वित्तीय पूंजीवाद
वाणिज्यिक तथा प्रारंभिक व्यापारिक साम्राज्यवाद-
इस चरण में साम्राज्यवाद का रूप वाणिज्यिक जरूरतों से प्रेरित था। इस चरण में पुर्तगाली पूर्व व स्पेन वासी पश्चिम में गए, इनका मुख्य उद्देश्य वहां से कम दाम पर सामानों को लाना व उसे ज्यादा कीमत पर यूरोप में बेचना था। परंतु १७ वीं शताब्दी के अंत तक इन साम्राज्यों का पतन होने लगा हालांकि इनसे संबंधित देशों का बहुत आर्थिक लाभ हुआ।
औद्योगिक पूंजीवाद व स्वतंत्र व्यापारिक साम्राज्यवाद
इसके बाद औद्योगिक पूंजीवाद व स्वतंत्र व्यापारिक साम्राज्यवाद की शुरुआत हुई | इस चरण की मुख्य शक्तियां ब्रिटेन ,फ्रांस तथा नीदरलैंड थी। औद्योगिक पूंजीवाद के विकास के कारण बाजार कच्चा माल तथा निवेश के लिए उपनिवेशो की आवश्यकता पड़ी। इस समय ऐसी नीति अपनाई गई जहां तक संभव हो बिना अधिपत्य या शासन के व्यापार करना परंतु औद्योगिकरण के लिए प्रतिद्वंदता और बढ़ गई क्योंकि जर्मनी, फ्रांस ,इटली ,अमेरिका ,बेल्जियम,रसिया और जापान सभी अपने लिए बाजार, कच्चा माल तथा निवेश सुनिश्चित तथा सुरक्षित करना चाहते थे, इसलिए मुफ्त व्यापार की नीति भी अन्उपयोगी प्रतीत होने लगी और मुक्त व्यापार का साम्राज्य भी समाप्त हो गया |
वित्तीय पूंजीवाद
इसके बाद वित्तीय पूंजीवाद का चरण शुरू हुआ इस समय और आद्योगिक पूँजीवाद व मुक्त व्यापार का स्थान वित्तीय पूंजीवाद व संरक्षण की नीति ने ले लिया इतिहासकारों का यह मानना है कि अपने देश में गिरते हुए लाभ और कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने वित्तीय पूंजीवाद को विदेश में अवसर खोजने के लिए प्रेरित किया इसी समय 1895 के आसपास वित्तीय पूंजीवाद की शुरुआत हुई | संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि वित्तीय पूंजीवाद वह स्तर है जहां बैंक व औद्योगिक संगठन दोनों ही एकाधिकारी होते हैं तथा परस्पर मिलकर उत्पादन के साधनों तथा मुद्रा की विनिमय को नियंत्रित करते हैं
साम्राज्यवाद की उत्पत्ति क्यों हुई
अब सवाल उठता है कि आखिर साम्राज्यवाद की उत्पत्ति क्यों हुई इसके लिए विद्वानों ने मुख्य दो कारण बताएं हैं
- आर्थिक कारण
- गैर आर्थिक कारण
आर्थिक कारण-:
ब्रिटेन के अर्थशास्त्री J A Hobson (१९०२) का मानना है कि औद्योगिकीकरण के पश्चात अत्याधिक उत्पादन व अतिरिक्त पूंजी ने ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी जैसे पूंजीवादी देशों को अविकसित देशों में पूंजी निवेश व राजनीतिक अधिपत्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया | हॉब्सन आगे बताते हैं कि अतिरिक्त पूंजी के निवेश द्वारा लाभ अर्जित करने की खोज ही साम्राज्यवाद की उत्पत्ति का मुख्य कारण थी| इसी प्रकार का विचार लगभग अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का भी था।
गैर आर्थिक कारण
हालाँकि बाद के कुछ अर्थशास्त्रियों और इतिहासकारों ने आर्थिक कारणों से असहमति प्रकट की है। उन्होंने साम्राज्यवाद का मुख्य कारण राजनीतिक बताया जंहा गौरव और प्रतिष्ठा ने यूरोपीय शक्तियों को साम्राज्यवाद के लिए प्रेरित किया|
वह आगे बताते हैं कि, नवसाम्राज्यवाद (Neo Imperialism) का उदय सत्ता और प्रतिष्ठा के कारण हुआ जहां राजनीतिक लाभ के लिए आर्थिक हितों का बलिदान करना पड़ा | यूरोप में नए समीकरणों की विशेषता यह थी कि राजनीतिक कारणों ने आर्थिक कारणों का स्थान ले लिया तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सैन्य शक्ति और प्रतिष्ठा प्रधान हो गए
कुछ इतिहासकारों ने साम्राज्यवाद की उत्पत्ति को “रणनीति का सिद्धांत” के अंदर भी रखा। जैसे उनका मानना था कि साम्राज्यवाद का प्रमुख कारण रणक्षेत्रीय था | इंग्लैंड का प्रमुख उद्देश्य अपने भारतीय साम्राज्य की रक्षा करना था इसलिए इंग्लैंड मिस्र में और उसके आगे सायप्रस तक रूचि रखता था | जब इंग्लैंड ने 1883 में मिश्र पर अपना वर्चस्व स्थापित किया तब प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला प्रारंभ हो गई इसी प्रतिक्रिया के फलस्वरुप फ्रांस ने पश्चिमी अफ्रीका में एक विशाल क्षेत्र पर नियंत्रण किया तथा जर्मनी ने भी कुछ उपनिवेश प्राप्त किए |
साम्रज्यवाद की इन परिभाषाओ और विशेताओ की समझ हमें वर्तमान समय में आ रही नए तरह के साम्राज्यवादी विचारधाराओ (जैसे रूस – उक्रैन संघर्ष , चीन का दक्षिण चीन सागर में अनैतिक विस्तार ) का विश्लेषण तथा प्रारूप स्पष्ट करने में सहायक है
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