श्रवण कुमार ‘शाश्वत’ की कविता…
Sahitya Manch हथेलियां सिकुड़ती हैं रोटी की खातिर,फफोले निकलते हैं बेटी की खातिर।बढ़ता हूँ आगे फिर मुड़ जाता हूँ,बिखड़ता हूँ ...
Sahitya Manch हथेलियां सिकुड़ती हैं रोटी की खातिर,फफोले निकलते हैं बेटी की खातिर।बढ़ता हूँ आगे फिर मुड़ जाता हूँ,बिखड़ता हूँ ...
Gazal - Sahitya Manch ग़ज़ल_1 हर पल इक पागल की ख़ातिरख़्वाब सजाये कल की ख़ातिरजिस पल में जीनी थीं सदियाँआया ...
Sahitya Manch : गौतम गोरखपुरी की ग़ज़लें ग़ज़ल_1कोई भी नहीं है हमारा सिवा इन किताबों केमेरी ज़िन्दगी का सहारा सिवा ...
Sahitya manch ग़ज़ल-1कर ज़रा और इज़ाफ़ा मिरी हैरानी मेंमेरी तस्वीर बना बहते हुए पानी में वो शब-ए-वस्ल चराग़ों को बुझा ...
Sahitya Manch : गौतम गोरखपुरी की ग़ज़लें ग़ज़ल_1दर्द हमको दे जाती हो किसके लिएजान इतना सताती हो किसके लिएगर कोई ...