Sahitya manch
ग़ज़ल-1
कर ज़रा और इज़ाफ़ा मिरी हैरानी में
मेरी तस्वीर बना बहते हुए पानी में
वो शब-ए-वस्ल चराग़ों को बुझा कर बोले
रौशनी है कहाँ दरकार बदन-ख़्वानी में
देख कर चाँद को हर रात यही सोचता हूँ
चाक पर छोड़ गया कौन इसे बे-ध्यानी में
मेरी तन्हाई मेरे साथ खड़ी देखती है
रक़्स करता है हिरन याद का वीरानी में
मिस्ल-ए-तेशा हुई हम अहल-ए-जुनूँ की क़िस्मत
हमको फ़रहाद उठाता नहीं आसानी में
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ग़ज़ल-2
आब की बस्ती में कैसे यह शरारा जाएगा
ख़ुद से ही उठते धुएँ से आप मारा जाएगा
फिर उठेगी तीरगी मातम लिये हर शम्अ’ से
जब सवाली को यहाँ काफ़िर पुकारा जाएगा
मछलियों ने ज़ब्त सागर कर रखे हैं आँख में
ये अगर जो रो पड़ीं तो बह किनारा जाएगा
मरहला ऐसा भी शायद पेश अब आने को है
एक पैराहन के हाथों जिस्म उतारा जाएगा
ख़्वाब के खेतों में तू बस चांद उगाता चल ‘अज़ल’
फ़स्ल को तेरी हर इक शब में निहारा जाएगा
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ग़ज़ल-3
धूप में अक्सर ये जलते साए किसके हैं
बा’द दिन के साथ चलते साए किसके हैं
टांँग रक्खा जिस्म को साँसों की खूंँटी पर
फिर भी आँगन में टहलते साए किसके हैं
तीरगी से अब तअ’ल्लुक तर्क कैसे हो
रौशनी के संग पलते साए किसके हैं
उम्र के किस मोड़ पर आके खड़ा हूँ मैं
हाथ से मेरे फिसलते साए किसके हैं
ख़्वाब शायद रात की वहशत ले आया है
मेरे आगे आँख मलते साए किसके हैं
ख़ून सा कुछ तो लगा है पांँवों में सबके
पैरों के नीचे कुचलते साए किसके हैं
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आशुतोष मिश्रा ‘अज़ल’
मधुबनी(बिहार)
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साहित्य मंच-अमर’ की चुनिंदा रचनाएँ