Gazal – Sahitya Manch
ग़ज़ल_1
हर पल इक पागल की ख़ातिर
ख़्वाब सजाये कल की ख़ातिर
जिस पल में जीनी थीं सदियाँ
आया वो इक पल की ख़ातिर
बेच गिटार हुआ दीवाना
तेरी इस पायल की ख़ातिर
ले आये दिल बुनकर अपना
सर्दी में कम्बल की ख़ातिर
ठुकरा दी है जग की दौलत
इक तेरे आँचल की ख़ातिर
ग़ालिब की गलियों में हम भी
भटके नज़्म ग़ज़ल की ख़ातिर
क़ैद किया वारिद को हमने
आज तिरे काजल की ख़ातिर
रहती है अनबन पेड़ों में
उस मीठी कोयल की ख़ातिर
मोड़ लिया मुँह सब रागों से
नदियों की कल कल की ख़ातिर
ज़ुल्म सहे कीचड़ के हमने
उस महबूब कमल की ख़ातिर
किसको अपना समझे धरती
जोगिन है बादल की ख़ातिर
आज हुई दिल से गुस्ताख़ी
छोड़ दिया सब कल की ख़ातिर
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ग़ज़ल_2
सब हदें छीन कर ले गई मुफलिसी
उलफतें छीन कर ले गई मुफलिसी
इक तमाशा बने रह गए हम यहां
शोहरतें छीन कर ले गई मुफलिसी
इश्क़ में हम लडे आखिरी सांस तक
चाहते छीन कर ले गई मुफलिसी
देखते ही रहे छू सके ना उसे
हसरतें छीन कर ले गई मुफलिसी
हमको देखा गया बेकदर की तरह
इज्जतें छीन कर ले गई मुफलिसी
उम्रभर छांव को हम तरसते रहे
कई छतें छीन कर ले गई मुफलिसी
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ग़ज़ल_3
ग़मों में ज़िंदगी का क्या करेंगे
लबों की ख़ामुशी का क्या करेंगे
मोहब्बत डायरी में लिख चुके हैं
अमाँ अब शायरी का क्या करेंगे
रक़ीबों से उसे हम छीन भी लें
मगर ऐसी ख़ुशी का क्या करेंगे
हमारी ज़िंदगी में तीरगी है
मियाँ हम रौशनी का क्या करेंगे
शराफ़त ख़ानदानी है हमारी
बताओ हम किसी का क्या करेंगे
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ग़ज़ल_4
आबरू को मेरी जब उछाला गया
होश मुझसे न मेरा सँभाला गया
पहले हमसे निकाले गए काम सब
फिर दिलों से हमें भी निकाला गया
जुगनुओं से भला क्यूँ शिकायत करें
हाथ से चाँद का जब उजाला गया
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रोहित गुस्ताख़
दतिया,मध्यप्रदेश
संपर्क सूत्र-7509849048
ईमेल[email protected]
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