साहित्य मंच – नीरज नवीद की ग़ज़लें
ग़ज़ल_1
हुक्मरानों पे शेर कहते हो?
कैसे लोगों पे शेर कहते हो
तीरगी बढ़ रही थी तब चुप थे
अब चराग़ों पे शेर कहते हो?
क़ैद रखते हो उनको पिंजरे में
और परिंदों पे शेर कहते हो?
तुम ज़मीं के तो हो नहीं पाए!
आसमानों पे शेर कहते हो?
काट डाले दरख़्त सारे अब
साएबानों पे शेर कहते हो?
चंद सिक्कों में बेचकर ईमान
अब उसूलों पे शेर कहते हो?
वो सरापा ही हुस्न है “नीरज”
तुम बस आँखों पे शेर कहते हो?
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ग़ज़ल_2
मुसाफ़िर हूँ, ठिकाना चाहता हूँ
दिलों में आशियाना चाहता हूँ
मैं जुगनू ही सही, ऐ चाँद तारो!
अँधेरे को मिटाना चाहता हूँ
मिलेगा जो मुक़द्दर में है, पर मैं
मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ
ग़ज़ल लिक्खी है इक तेरे लिए, सो
तुझे मिलकर सुनाना चाहता हूँ
उदासी से बहुत उकता गया मन
मैं खुलकर मुस्कुराना चाहता हूँ
तुम्हारी याद तो जीने न देगी
मैं तुमको भूल जाना चाहता हूँ
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संक्षिप्त परिचय–
ग़ज़लकार – नीरज नवीद
शिक्षा - एम. फिल.(गणित), बी.एड.
कार्य क्षेत्र - अध्यापन
पता- बड़ौत,जनपद-बागपत, उत्तर प्रदेश
Email- [email protected]
साहित्य मंच:The Praman
संदीप राज़ आनंद
(संपादक)
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बहुत शुक्रिया❤️