ग़ज़ल _ 1
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तुम्हें कुछ ख़बर है कि क्या हो रहा है।
दुबारा ये दिल लापता हो रहा है।
लो सज़दे में झुकने लगीं फिर निगाहें
कोई शख़्स मेरा ख़ुदा हो रहा है।
तेरे इश्क़ में भी वही बात निकली
रक़ीबों से फिर सामना हो रहा है।
उसे बेवफ़ा यार कोई ना कहना
दीवाना ख़ुशी से जुदा हो रहा है।
उधारी में जो ज़ख्म तुमने दिए थे
वो आँखों से अब तक अदा हो रहा है।
ये दुनिया तुम्हारी तुम्हें ही मुबारक
लो ‘आनन्द’ अब देवता हो रहा है।
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ग़ज़ल_ 2
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गलत तुम कह रही हो जान ऐसा कुछ नहीं होता।
मोहब्बत बस मोहब्बत है तमाशा कुछ नहीं होता।
किसी दिन झूल जाऊँगा गले में डालकर फंदा
बुरा होता है मेरे साथ अच्छा कुछ नहीं होता।
हवा से बात होती चाँद तारे साथ में चलते
तू रहती पास में लड़की तो कितना कुछ नहीं होता।
यहाँ चलती नहीं है रंग सूरत जात की बंदिश
मोहब्बत में सुनो कानून जैसा कुछ नहीं होता।
कोई भी पैतरा साधो मगर कुर्सी बचाओ तुम
सियासी खेल में अब झूठ सच्चा कुछ नहीं होता।
वही इक नाम सच है बस उसी से शख़्सियत सबकी
ख़ुदा होता है सबकुछ यार बंदा कुछ नहीं होता।
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ग़ज़ल _ 3
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दिल जलाकर न यूँ हँसा करते।
तुम भी गर टूट कर वफ़ा करते।
जान लेने की क्या जरूरत थी?
हम तो वैसे भी ये अता करते।
कह दिया तुमने बेवफ़ा मुझको
सच तो इक बार तुम पता करते।
टूट जाती कफ़स की दीवारें
तुम ज़रा-सा जो हौसला करते।
होने देते नहीं सज़ा तुझको
हम तेरे हक़ में फैसला करते।
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संक्षिप्त परिचय-
संदीप राज़ आनंद
सम्प्रति – छात्र,जेएनयू नई दिल्ली
मूल पता- खड्डा, जनपद-कुशीनगर (उत्तरप्रदेश)
ईमेल – sandeep112anand@gmail.com
मोबाइल-7054696346