साहित्य मंच – ग़ज़ल
संपादक
संदीप राज आनंद
ग़ज़ल -1
यहाँ किसको बताएं हम दिले दिलदार का मतलब
गलत ही तो समझते हैं सभी अब प्यार का मतलब
जरा सी बात पर टुकड़ों में घर को बांटने वालों
तुम्हें मालूम है क्या होता है दीवार का मतलब
हवा से कहियो आहिस्ता छुए नाज़ुक बदन उसके
वगरना समझा देगी अच्छे से अँगार का मतलब
ख़ुशी में साथ रहतें हो ग़मों में छोड़ जातें हो
नहीं ऐसा नहीं होता है सच्चे यार का मतलब
कोई भी काम के लायक नहीं बेकार है हम जाँ
तुम्हें मालूम है ना अच्छे से बेकार का मतलब
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ग़ज़ल-2
यहां दिखते नहीं हैं मिलने के आसार शहज़ादी
चलो चलते हैं अब इस मुल्क से हम पार शहज़ादी
अरे ! अब तोड़ दो नफ़रत की ये दीवार शहज़ादी
वफ़ा के वास्ते ही फेंक दो तलवार शहज़ादी
रहे तू साथ तो जलता रहूं मैं उम्र भर यूँ ही
बिना तेरे मेरी ये ज़िंदगी है खार शहज़ादी
अगर तू चाहती है मैं बनूँ ना क़ैस मेरी जाँ
तो फिर तू छोड़ मेरे वास्ते घर-बार शहज़ादी
गलत होगा नहीं,तुमको रखूं ग़र बेनज़ीरो में
मुनासिब है हो तुम इस चीज़ की हक़दार शहज़ादी
बहुत शुक्रिया