विरोध प्रदर्शन, मापदंड एवं मौलिक अधिकार, (Protest and Fundamental Right)-
गणतंत्र को लोकतंत्र,जनतंत्र,प्रजातंत्र आदि अनेक नामों से जाना जाता है। ये शब्द हमें हमारी स्वतंत्रता का एहसास कराते हैं। क्योंकि भले ही हमें स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 को मिली हो परंतु हमें वास्तविक स्वतंत्रता 26 जनवरी 1950 को मिली।क्योंकि इसी दिन हमें हमारे मूल अधिकार मिले। जिसमें हमारी स्वतंत्रता निहित है।
परंतु समय के साथ मूल अधिकार के रूप में मिले इन अधिकारों का दूरूपयोग होने लगा है और हम देश के प्रति अपने कर्तव्य को भूलते गये।यह एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए विरोध का होना आवश्यक है।
परंतु यह विरोध संवैधानिक आदर्शों एवं नैतिकताओं के अनुरूप होना चाहिए।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह गांधी का देश है जिसने विश्व के समक्ष विरोध की प्रक्रिया के नए मापदंड स्थापित किए। उन्होंने सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए भूख-हड़ताल,अनशन,सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन जैसे हथियारों का जीवन पर्यंत साथ नहीं छोड़ा।गांधी जी के ये मार्ग आज भी प्रासंगिक है।आज पूरा विश्व गांधी के इन सिद्धांतों को अपनी स्वीकार्यता प्रदान कर रहा है।
देश ने गांधी के विचारों के साथ साथ मार्क्स लेनिन एवम् माओ के विचारों को भी जगह दी।परंतु इन विचारधराओं से प्रेरित कुछ लोग ये भूल जाते हैं कि भारतीय संविधान ने विचारों को अवश्य जगह दी है।परंतु साथ ही अभिव्यक्ति के लिए भी कई मानक तय किये गए हैं। हाल ही में जब भारत सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम लाया गया तो उसके कुछ प्रावधानों को लेकर देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखा गया जिसमें संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर आगजनी से लेकर लूटपाट पथराव और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया।
यह न केवल गांधी के आदर्शो का अपमान है बल्कि संविधान और कानून का भी उल्लंघन है।भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों का जिक्र है। जिसके अंतर्गत अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े कुछ अधिकार है।इसमें बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी,शांतिपूर्ण और बिना हथियार के एक जगह इकट्ठा होने या सम्मेलन की आजादी,संगम या संघ बनाने की आजादी आदि का प्रावधान किया गया है।साथ ही इन अधिकारों पर तर्कसंगत सीमाओं का भी प्रावधान किया गया है।
गौरतलब है कि भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने तथा लोक व्यवस्था में सदाचार को बनाए रखने समेत कुछ अन्य आधारों पर अनुच्छेद 19 के तहत मिले मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाए गए हैं। साथ ही अनुच्छेद 51A के तहत सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा नागरिकों का मूल कर्तव्य भी है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी वर्ष 2018 में सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर गाइडलाइन जारी करते हुए कहा है कि नागरिकों को अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए कर्तव्यों की भी जानकारी होनी चाहिए।
इस संदर्भ में 23 जुलाई 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया।कोर्ट ने जंतर-मंतर पर धरना और प्रदर्शन की अनुमति देते हुए प्राधिकरण से कहा कि वह इस बात को सुनिश्चित करें कि धरना और प्रदर्शन के दौरान वहां रहने वाले आम नागरिकों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो और उनका अधिकार प्रभावित ना हो।
अदालत ने कहा था कि कानूनी तरीके से विरोध करना लोकतंत्र की विशिष्ट पहचान तथा नागरिकों का मौलिक अधिकार है।पर साथ ही साथ आम नागरिकों भी देश के संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत रहकर ही अपनी मांगों के लिए आवाज उठानी चाहिए। विरोध-प्रदशनो के दौरान हमें अपने मूल अधिकारो व कर्तव्यो का भी भान होना चाहिए। साथ ही साथ हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम उस देश के नागरिक है । जिसे गांधी ने अपने अहिंसात्मक प्रयोगों द्वारा स्वतंत्रता दिलाई थी। उपर्युक्त समस्त विचार लेखक के हैं
✍️रोहित राज मिश्रा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
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बहुत ही सुंदर विचार लिखे है आप
जानकारी अच्छी लगी