माँ ममता की मूर्ति है , भक्ति करे निष्काम ।
चरणों में उनकी दिखे, जन्नत चारों धाम ।।
देवी, जननी औ’ धरा, माता के उपमान ।
माता के यशगान को, करते वेद-कुरान।।
माँ को जब भी देखता, खुशियाँ मिले अपार ।
रब के दूजे रूप को, पूजे यह संसार ।।
लिये स्वर्ग की चाह वह, घूमे चारों धाम।
जिसके घर माँ कर रही, नौकर वाले काम।।
सदा स्नेह वो बाँटती, देती सबको छाँव।
तप, निष्ठा औ कर्म है, माँ ममता का गाँव ।।
माँ के कर्मों में दिखे, नभ जैसा विस्तार ।
हर बेटों के भाग्य में, माँ जीवन का सार।।
नित बेटे को ढूँढती, माँ के बूढ़े नैन।
वृद्धाश्रम की सीढ़ियाँ, देख उसे बेचैन।।
सत्यम भारती
शोध छात्र
महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
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