Mahatma Gandhi vs Ambedkar : जाति व्यवस्था पर आंबेडकर और महात्मा गाँधी-
आजादी के ७३ साल के इतिहास में जंहा भारत एक आधुनिक शक्ति के रूप में उभरते हुए अपने राजीनीतिक आर्थिक और सामाजिक पहलुओं में कई सुधार किये, वही इन सुधारो के उपरांत भी भारत में कई ऐसे सामाजिक समस्याएं व्याप्त है जैसे की जाति व्यवस्था और अस्पृशयता । जिसका प्रमाण आज भी गांव व कस्बो में देखने को मिल जाते है। इस जाति व्यवस्था को कई क्षेत्रीय राजनितिक दलों ने अपने फायदे के लिए समाज में ध्रुवीकरण करने का काम किया है |आज के सन्दर्भ में हमे इस व्यवस्था को समझना और इसके दुष्ट आचरणों (EVIL practices) को ख़त्म करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो चूका है|इस जाति व्यवस्था को समझने के लिए हमे इतिहास के दो महान विचारधाराओ के दृंदृ समझना बहुत जरूरी है —
भारतीय समाज में जाति व्यवस्था एक वर्ग संरचना है, जो जन्म से तय होती है, जाति व्यवस्था एक प्रकार का ”सामाजिक स्तरीकरण” भी है जिसमे दो, वर्ण और जाति शामिल है । वर्णो को चार भागो में विभाजित किया गया है ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जिसमे दलित को हमेशा वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया, और उन्हें अछूत माना गया| कई भारतीय नेताओ और विचारको ने जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता के बारे में लिखा और लड़ा जिसमे सबसे बड़ा नाम भीमराव अम्बेडकर का आता है ,अम्बेडकर अपने पुस्तक (Annihilation of Caste) में जाति व्यवस्था से जुडी दुष्ट आचरण (evil practices) का जिक्र करते है |
हालांकि अंबेडकर के इस विचारधारा को बहुत सारे आलोचकों का सामना करना पड़ा जिसमें एक बड़ा नाम महात्मा गांधी का भी था| अंबेडकर का यह मानना था कि धर्म का केंद्र मानव और मानव के बीच में होना चाहिए नाकि मानव और भगवान के बीच (जो गांधी जी का मानना था) अपने शुरुआती दौर में अंबेडकर ने भी बहुत कोशिश की वह जाति व्यवस्था से जुड़ी दुष्ट आचरण(evil practices) को दूर करके और हिंदू धर्म में सुधार लें ,लेकिन समय के बीतने के साथ अंबेडकर यह मानने लगे कि “जाति व्यवस्था का सुधार बिना हिंदू धर्म के विनाश के नहीं हो” सकता| वह हिंदू शास्त्रों की निंदा करते यह कहते हुए कि यह ब्राह्मणों द्वारा रची गई पुस्तक है जिसका उद्देश्य संप्रभुता हासिल करना था ,लेकिन इसके प्रतिकूल गांधी जी का यह मानना था की जाति व्यवस्था को धर्म से कोई लेना देना नहीं है| गांधी के लिए वर्ण और जाति दोनों अलग अलग चीजें थी | वो जाति को पूर्वगामी अधःपतन (retrograde degeneration) बताते है |
अंबेडकर जाति व्यवस्था से जुडी दुष्ट आचरण (evil practices) को बताते हुए कहते है की जाति हिन्दुओ को एक वास्तविक समाज बनने से रोक रखा है इसके कारण असामाजिक भावना उभरती रही। वो कहते है जाति व्यवस्था
के माध्यम से उच्च जाति ने निचली जाति को नीचा दिखने की साजिस रची | जिसके कारण हिन्दू धर्म कभी missionary धर्म नहीं बन पाया| इसके सन्दर्भ में वो आगे कहते है की कोई भी राजनितिक या आर्थिक सुधार लाने से पहले सामाजिक सुधार लाना जरूरी है |वो इसके सन्दर्भ में बहुत मिशालें पेश करते है- जैसे मुस्लिम साम्राज्य का बसना और इस्लाम का प्रचार प्रसार के पीछेProphet Muhammad के सामजिक सुधार की अहम् भूमिका रही। चंद्रगुप्त मौर्य के सम्राज्य स्थापना के पीछे budhdhism और janism ने अपनी अहम् भूमिका अदा की |
आंबेडकर उन सभी विचरो का खंडन करते है ,जो ये कहते है की जाति व्यवस्था तो एक तरह का श्रम विभाजन (labour division) है । आंबेडकर का ऐसा मानना था की जाति व्यवस्था श्रम का विभाजन नहीं बल्कि श्रमिको का पदानुक्रम विभाजन था और ये विभाजन उनके पसंद से नहीं है बल्कि पूर्व नियति की हठधर्मिता(dogma of Predestination) से था जो हिन्दू शास्त्र तय करती थी।
आंबेडकर के इस विचार धारा का खंडन करते हुए गाँधी ने “vindication of caste” में कहा की जिन शस्त्रों का अम्बेडकर जिक्र कर रहे है वो विश्वसनीय नहीं है । गाँधी कहते है शास्त्रों को समझने के लिए उनका व्याख्या देखंना जरूरी है ,जो की अम्बेडकर ने नहीं देखा । गाँधी कहते है वर्ण और आश्रम दो ऐसी संस्था है जिनका जाति से कोई लेना देना नहीं है,| हालांकि अश्पृश्यता (छुआछूत) पर गाँधी और अंबेडकर दोनों का एक मत था की ये हिन्दू धर्म की नैतिकता पर संकट है। दोनों ने अपने अपने तरिके से इसका निवारण करना चाहा, जंहा गांधी ”आत्मशुद्धि” की बात करते है वही अम्बेडकर अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए “आत्मसम्मान” की बात करते है। जंहा गाँधी इसमें उच्च जाति की सहभागिता चाहते है, वही अम्बेडकर चाहते है की निचली जाति अपने आत्मसम्मान और अधिकार के लिए सचेत रहे।
”अम्बेडकर इस जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता को भौतिकवादी नजरिये से देखते है, जबकि वही गाँधी ने इसे आध्यात्मिक नजरिये से देखा””
हालांकि गांधी और अम्बेडकर के जाति पर विचार समझने के लिए, हमे उनका सन्दर्भ भी समझना जरूरी है। शुरूआती चरणों में गांधी के विचारधारा से ये प्रतीत हो सकता है की वो रूढ़िवादी हिन्दू थे लेकिन वही समय के साथ उनके विचारधार में परिवर्तन देखने को मिलता है जंहा ( 1920 -21 ) में गाँधी अंतर्जातीय विवाह और इंटर डाइनिंग के पक्ष में नहीं थे वही (१९३४)के आस पास इनके विचार धारा में परिवर्तन देखने को मिलता है। अम्बेडकर भी लड़ते लड़ते ये समझ चुके थे की हिन्दू धर्म की विचारधारा का विनाश मुमकिन नहीं था। अंततः वह हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म को अपना लिए हालाँकि इसमें हम आंबेडकर की सफलता या असफलता के माप दंड में नहीं ढाल सकते “क्योकि हर जंग जितने के लिए नही लड़ी जाति कुछ दुनिया को यह बताने के लिए लड़ी जाति है की कोई था जो रणभूमि में लड़ रहा था” आंबेडकर इन कु-प्रथाओ को खत्म करके बस एक समाज की कल्पना कर रहे थे जिसका आधार स्वतंत्रता ,समानता भाईचारा था।
निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है की दोनों विचारधाराएं एक दूसरे से विपरीत होते हुए भी हमे इस जाति एवं वर्ग व्यवस्था पर एक गहरी समझ प्रदान करती है |
“ Hinduism dies if untouchability lives, and untouchability has to die if Hinduism is to live.’’
MAHATMA GANDHI
PRATYUSH MISHRA
(UNIVERSITY OF DELHI)
(SPcl; MODERN HISTORY)