नन्द वंश (Nanda dynasty)
नन्द वंश का इतिहास- नंद वंश का इतिहास बहुत प्राचीन है, जिसका कार्यकाल 344 ई. पू. से 322 ई. पू. तक रहा। भारत के सबसे प्राचीन राजवंशों में से एक नंद वंश को “महापद्मनंद” नाम से भी जाना जाता हैं। यह वंश शिशुनाग वंश के बाद और मौर्य साम्राज्य से पूर्ववर्ती था।
नंद वंश के संस्थापक
चौथी-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में नंद वंश ने उत्तरी भारत के विशाल भूभाग पर एकाधिकार था। नंद वंश के संस्थापक की बात की जाए या फिर यह कहें कि नंद वंश की स्थापना किसने कि तो इसका पूरा श्रेय महापद्मनंद को जाता है। सच्चे अर्थों में महापद्मनंद ही नंद वंश के संस्थापक हैं जबकि घनानंद, नंद वंश के अंतिम शासक थे। नंद वंश का मगध के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
नन्द वंश की जाति (Nanda dynasty Caste)
युनानी लेखकों के अनुसार महापद्मनंद निम्न (नाई) जाति के थे। मगध (बिहार) इनका मुख्य कार्यकारी क्षेत्र था। महापद्मनंद के नाम पर ही इस राजवंश का नाम नंद वंश (Nanda dynasty) पड़ा। नंद वंश का शासन 344 ईसा पूर्व से लेकर 322 ईसा पूर्व तक का रहा। इतिहास में 22 वर्षों तक मगध पर राज करने वाला यह राजवंश बहुत प्रसिद्ध है, इसी वंश के अंतिम शासक घनानंद को अपदस्थ करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
नन्द वंश की शासन पद्धति (Nanda Dynasty Administration)
नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक भी कहा जाता है। सम्राट महापद्मनंद को भारत का प्रथम ऐतिहासिक चक्रवर्ती सम्राट होने का गौरव भी प्राप्त है
नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद के समय इनके राजकोष में 99 करोड की स्वर्ण मुद्रा थी साथ ही आंतरिक और विदेशी व्यापार बड़ी तादाद में होता था। यदि हम चीनी यात्री हेनसांग की बात करें तो भारत भ्रमण के समय उनके द्वारा लिखी गई यात्रा वृतांत से जानकारी मिलती है कि नंद वंश के राजाओं के पास अपार धन-संपत्ति और खजाने थे, जिसमें तरह-तरह के बहुमूल्य कीमती पत्थर (7 तरह के) भी थे।
नंद वंश का विस्तार (Nanda Dynasty expansion)
नंद वंश (Nand Vansh) का विस्तार करने का पूरक श्रेय नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद को जाता है जिन्होंने मगध को एक विशाल साम्राज्य में तब्दील कर दिया। नंद वंश के विस्तार की बात की जाए तो यह पूर्व दिशा में चंपा, दक्षिण दिशा में गोदावरी, पश्चिम दिशा में व्यास और उत्तर दिशा में हिमालय तक, भारत के विशाल भूभाग पर यह मगध साम्राज्य फैला हुआ था।
महापद्मनंद एक ऐसे राजा थे जिन्होंने अपनी सेना को राजधानी के बजाय राज्य की सीमा पर तैनात करना प्रारंभ किया था। आसपास के सभी क्षेत्रों और छोटे-बड़े जनपदों को मिलाकर एक राष्ट्र में तब्दील करने की योजना सर्वप्रथम महापद्मनंद ने ही बनाई थी।
महापद्मनंद ने अपनी राजनीतिक सक्रियता (political activism) और पराक्रम के बलबूते मगध साम्राज्य को एक राष्ट्र के रूप में परिवर्तित करने के सपने को साकार कर दिया। महापद्मनंद ने राज्य विस्तार के साथ साथ लोगों की घृणित मानसिकता का भी विकास किया।
विशाल सैन्य शक्ति के बलबूते महापद्मनंद ने हिमालय और नर्मदा के बीच अधिकतर प्रदेशों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला दिया।
नंद वंश और विद्वान (Nanda Dynasty and Scholars)
नंद वंश (Nanda Dynasty) को इतिहासकारों ने प्रारंभ से ही विद्वानों के खिलाफ बताने की कोशिश की है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह आप जानते हैं कि व्याकरण और भाषा विज्ञान पर आधारित विश्व प्रसिद्ध किताब “अष्टाध्यायी” की रचना पाणिनि द्वारा की गई थी। पाणिनि नंद वंश राज दरबार के रत्नों में शामिल थे।
इतना ही नहीं नंद वंश के प्रथम शासक महापद्मनंद के परम मित्र भी थे और महापद्मनंद के समय में ही पाणिनि द्वारा “अष्टाध्यायी” नामक पुस्तक की रचना की गई थी।
नंद वंश के शासकों के कार्यकाल में ना सिर्फ पाणिनी जैसे विश्व प्रसिद्ध विद्वान हुए बल्कि कात्यायन, उपवर्ष और वर्ष जैसे महान विद्वानों के नंद वंश के शासकों के साथ घनिष्ठ रिश्ता था।
नंद वंश की उपलब्धियां (Achievements of Nanda Dynasty)
- 1 -नंद वंश के शासकों ने ही सर्वप्रथम एक राष्ट्र की विचारधारा को मजबूती प्रदान की थी।
- 2 -नंद वंश का संपूर्ण साम्राज्य धर्मनिरपेक्षता पर आधारित था क्योंकि इस साम्राज्य के कार्यकाल में किसी भी विशेष धर्म को विशेष महत्व देने का उल्लेख नहीं मिलता है।
- 3- नंद वंश के राजाओं ने ऊंच-नीच की वर्ण व्यवस्था को समाप्त किया और जाति आधारित छोटे-छोटे जनपदों को एक कर दिया।
- 4- नंद वंश के राजा अच्छी तरह से जानते थे कि सिर्फ मगधी भाषा से कुछ नहीं होने वाला है, इसलिए उन्होंने साम्राज्य के एक छोर से दूसरे छोर तक एक भाषा में बात करने के लिए पाणिनि को जिम्मेदारी दी और पाणिनी ने एक ऐसी भाषा विकसित की जो संपूर्ण साम्राज्य में एकरूपता थी और यह भाषा थी संस्कृत।
- 5 -नंद वंश के राजाओं ने अपने इतिहास को संजोए रखने के लिए ना स्तंभ लगाए और ना ही प्रशस्ति पत्र लिखवाए क्योंकि उनका मानना था कि यह फिजूल खर्चा है।
- 6- निम्न वर्ग के उत्कर्ष के रूप में नन्द वंश की बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
- 7 -विदेशी आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने से कतराते थे क्योंकि उनके सामने नंद वंश की विशाल सेना खड़ी थी, जो धन-धान्य से परिपूर्ण थी। यह भी नंद वंश की मुख्य उपलब्धि है। 8 -नंद साम्राज्य के दौरान मगध राज्य राजनीतिक दृष्टि से तो शक्तिशाली था ही आर्थिक दृष्टि से भी बहुत अधिक समृद्धशाली साम्राज्य बन गया।
- 9- मगध राज्य की आर्थिक समृद्धि की वजह से ही पाटलिपुत्र शिक्षा और साहित्य का मुख्य केंद्र बन पाया।
- 10 -नंद वंश साम्राज्य में ही आचार्य पाणिनि, वर्ष, उपवर्ष और कात्यायन जैसे विद्वानों ने जन्म लिया।
- 11 -सारांश रूप में नंद वंश की उपलब्धियों की बात की जाए तो नंद राजाओं के कार्यकाल में मगध साम्राज्य राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से काफी मजबूत था।
- 12- नंद वंश की सेना ने विदेशी आक्रमणकारियों को रोकने में कामयाब रही।
नन्द वंश का अंतिम सम्राट(Nanda Dynasty last emperor –
घनानंद नंद वंश के अंतिम शासक के रूप में विश्व विख्यात हैं। इनकी माता का नाम महानंदिनी तथा पिता का नाम महापद्मनंद था। इनके बड़े भाई कैवर्त और पिता महापद्मनंद की मृत्यु के पश्चात यह ज्यादातर समय शोक में डूबे रहते थे। घनानंद को पराजित करके ही चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
नंद वंश के इन राजाओं को नव नंद के नाम से भी जाना जाता है।
नंद वंश का कार्यकाल (Nanda Dynasty Time Period)
नंद वंश का कार्यकाल 344 ईसा पूर्व से 322 ईसा पूर्व का रहा यानी कि कुल मिलाकर 22 वर्ष।
अधिकतर इतिहासकार जिसमें विवेकानंद झा का नाम भी शामिल है नंद वंश की शासन अवधि 22 वर्ष मानते हैं। सनातन संस्कृति से जुड़े ग्रंथों, जैन धर्म से जुड़े ग्रंथ और बौद्ध धर्म से जुड़े ग्रंथों का अध्ययन करने से पता चलता है कि 9 नंद राजा थे जिन्होंने 22 वर्षों तक शासन किया।
“महावंश” नामक ग्रंथ जोकि पाली भाषा में लिखा गया है, इसके अनुसार भी नंद वंश के 22 वर्षों के कार्यकाल का वर्णन मिलता हैं।
नंद वंश (Nanda Dynasty) के पतन के कारण
नंद वंश का पतन कैसे हुआ?
घनानंद को नंद वंश का अंतिम शासक माना जाता है। “महावंशटीका” का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि घनानंद कठोर तथा लोभी और कपटी स्वभाव का व्यक्ति था। अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद ने भरी सभा में आचार्य चाणक्य का अपमान किया था। “मुद्राराक्षस” से इस बात की पुष्टि भी होती हैं और यह भी ज्ञात होता है कि चाणक्य को उसके पद से हटा दिया गया था।
आचार्य चाणक्य बहुत विद्वान और राजनीतिक गुणों से भरपूर व्यक्ति थे। सभा में हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए आचार्य चाणक्य ने नंद साम्राज्य का पतन करने की शपथ ली। आचार्य चाणक्य क्षत्रिय (कुशवंशी) चंद्रगुप्त मौर्य का सहयोग किया और उन्हें घनानंद के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया।
आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने मिलकर एक विशाल सेना का निर्माण किया। आचार्य चाणक्य नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को रास्ते से हटाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी नीतियों का सहारा लिया और प्रवर्तक अर्थात पोरस से संधि कर ली।
322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को पराजित करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। नंद वंश के पतन (nand vansh ka patan) और मौर्य साम्राज्य की स्थापना में आचार्य चाणक्य का विशेष योगदान रहा। to know more
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