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“मानव जिजीविषा का एक सुसंगठित दस्तावेज” उपन्यास ‘रात के जूड़े में पलाश के फूल’ – मिजाज

संदीप राज़ आनन्द by संदीप राज़ आनन्द
April 8, 2022
in साहित्य मंच, आपका मंच
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पुस्तक समीक्षा – उपन्यास ‘रात के जूड़े में पलाश के फूल’ – “मिजाज”

हर्ष मणि सिंह “मिजाज” का उपन्यास रात के जूड़े में पलाश के फूल मानव जिजीविषा का एक सुसंगठित दस्तावेज है। एक ऐसा दौर जहां चारो ओर भ्रम का बाजार फैला हुआ हो, तो तसल्ली कैसे बटोरी जाय , वह दौर जब निराशा, अकेलापन मानव जीवन का एक हिस्सा बन चुका है। उस दौर की कहानी बयां करता यह उपन्यास मानव की जिजीविषा से हमें रूबरू कराता है। लेखक लॉकडाउन और महामारी की पृष्ठभूमि में झूलते हुए इंसान को अपने उपन्यास में अलग-अलग किरदारों में ढालकर हमारे सामने रखता है। यह उपन्यास डॉक्टर सरैफिक,केमिस्ट राय,गौरा,स्वाति, गोबर,खुम्भा साहिर और गीता जैसे किरदारों के बीच बोयी हुई दास्तां है। जीवन के कोरे पन्नों पर एक रंगीन चित्र उकेरते लेखक का यह कैनवस हमारी आंखों को बरबस अपनी ओर खींच ले जाता है। इस उपन्यास की एक खास बात यह भी है कि लेखक उस तात्कालिक दौर में आर्थिक,मानसिक तथा सामाजिक हर तनाव से गुजरते हुए इंसान की जिंदगी से सीधे जुड़ता है। जीवन के इतने रंगों को एक जगह समेट कर इस खूबसूरत कृति को हमारे सामने लाकर रखने की लेखक की यह कोशिश सराहनीय है। हम सबको इस उपन्यास को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। –

अपनी बात – “मिजाज“

रात की जूड़े में पलाश के फूल वास्तव में खुद से ही संवाद करते एकाकी लोग जब किसी दूसरे एकाकी से मिलते हैं और अगर वह समय जीवन पर संकट का ऐसा दस्तावेज हो जिसको लिखना जिसको लिखना मानो मानव की जीने की चाह को बरकरार रखना ह। जब जीने की चाह की बात हो उसे व्यक्त करने का कोई एक तरीका नहीं हो सकता विचारों की बालू से पहलुओं और उम्मीद का एक ऐसा गारा तैयार करना पड़ता है जो दरीचा बन जाए। जहां जिस्म का लॉकडाउन मायने नहीं रखता। जीवन की सभी गिरह खुल जाती है पलाश के फूल का रंग बातों के प्रेम में ऐसा तब्दील हो जाता है कि आप मदावा के लिए मुंतज़िर हो जाते हैं। एक बेहद कठिन दौर के बावजूद लिखा गया या उपन्यास एक मदावा ही है। लेखक असंख्य तारो जितने एहसास लेकर बैठा था एक चांद की खोज में। उम्मीद करता हूं कि पढ़ते वक्त पलाश के फूल के रंग पाठक अपने हाथों में लगा पाए। एंड टो एंड इंक्रिप्टेड शैली में विकसित पात्रों और उनके संवादों का साहित्य के अधिकारिक लोगों को सादर नमन |

पाठको की प्रतिक्रिया

यह किताब दार्शनिक और साहित्यिक पक्ष के साथ मौजूदा आर्थिक दुनिया और उस से लिपटी परिस्थितियों की एक मुकम्मल बयानों का जीवित दस्तावेज है जहां आवाम इस अस्थिर दुनिया में स्थिरता की तलाश कर रही है अगर आप भी अपनी मौजूदगी तलाश कर रहे हैं तो यह किताब आपके लिए ही है

हम न होंगे- मिज़ाज

मिज़ाज डायरी – हर्ष मणि सिंह ”मिज़ाज”

नोट- यह पुस्तक amazon जैसे प्लेटफार्म पर उपलब्ध है

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