भारतीय अर्थव्यवस्था….. जैसा कि हम सब जानते हैं सदियों से हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। हम बात करते हैं 17 व 18 वीं शताब्दी कि जिस समय भारत की 90 प्रतिशत कृषि कार्य में संलग्न थी। इसके साथ-साथ लोग खाली वक्त में लघु सूक्ष्म एवं हस्तकला जैसे कार्यों में भी रुचि लेते थे|
जिससे हमारा भारत कृषि संपन्न होने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भी था। हमारे यहां से कुछ विशेष वस्तुएं जैसे – रेशम कपड़े, मसाला, सूती कपड़े, संगमरमर के सामान, लकड़ी पर नक्काशी, सोने चांदी आभूषणों तथा पत्थरों पर नक्काशी इत्यादि विश्व भर में सुप्रसिद्ध थी तथा यहां से इन सभी वस्तुओं का विश्व भर में निर्यात किया जाता था। इस वजह से हमारे देश को सोने की चिड़िया के रूप में जाना जाता था। वक्त धीरे-धीरे बीतता गया हमारे देश पर अंग्रेजों की हुकूमत हुई और इसके बाद से 19 वीं -20वीं शताब्दी में हमारे भारत देश की कृषि कार्य में संलग्न लोगों की संख्या 90% से घटकर 85% हो गई। इसके दो प्रमुख कारण रहे हैं – पहला अंग्रेजों द्वारा लागू भू राजस्व की प्रणाली तथा दूसरा अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती नगदी फसल की बुवाई ।
यह भू राजस्व प्रणाली को 3 तरीके से लागू किया गया।
(1) अस्थाई बंदोबस्त (Permanent Settlement Act) ,
(2) महलवारी व्यवस्था, ( Mahalwari system)
(3) रैयतवाड़ी व्यवस्था। ( Ryotwari system)
आइए हम इन सब के बारे में थोड़ा थोड़ा जाने की कोशिश करते हैं जैसा कि हम बात करते हैं –
अस्थाई बंदोबस्त भू राजस्व प्रणाली की –
यह एक ऐसी भू राजस्व प्रणाली थी जिसमें किसानों से भू-राजस्व की वसूली जमीदार करते थे। यह प्रणाली 1793 में सर्वप्रथम लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा स्टार्ट की गई। जिसे भारत के बिहार,उड़ीसा, बनारस, कर्नाटक जैसे क्षेत्रों में लागू किया गया। इस प्रणाली के अंतर्गत जमीदार भू राजस्व का 1/11 भाग अपने पास रखते थे तथा 10/11 अंग्रेजी कोष में जमा करते थे ।
महालवाड़ी व्यवस्था ( Mahalwari system)
जिसमें ‘महाल’ का अर्थ -ग्राम समुदाय से है । यह व्यवस्था 1833 ईस्वी में लॉर्ड मैकेंजी द्वारा स्टार्ट हुई जिसे भारत के यूपी,मध्य प्रदेश, पंजाब वाले क्षेत्र में लागू किया गया सर्वप्रथम इस प्रणाली के अंतर्गत उत्पादन का 80% वसूला जाता था लेकिन धीरे-धीरे इसे कम कर दिया गया। लॉर्ड बैटिंग के समय इसे 66 प्रतिशत तथा डलहौजी के समय 50% कर दिया गया।
रैयतवाड़ी व्यवस्था- ( Ryotwari system)
यहां रैयत का किसान से स्टोन वाले को 1792 में मद्रास में थॉमस मुनरो तथा 1735 ईस्वी मुंबई के विनगेट द्वारा लगाया गया । इस प्रणाली के अंतर्गत सर्वप्रथम उत्पादन का 30 से 33% वसूला गया लेकिन फिर धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 50% तथा इससे अधिक कर दिया गया। कहा जाता है कि यह व्यवस्था सबसे पहले लागू हुई थी । इस तरह भारतीय कृषि को तीनों प्रणालियों ने बहुत प्रभावित किया तो इसके साथ ही साथ ‘नकदी फसल प्रणाली‘ की मुख्य भूमिका रही है|
आइए हम जानते हैं क्या है –
नकदी फसल प्रणाली-(cash crop system)
नकदी फसल प्रणाली के अंतर्गत ब्रिटिश भारतीयों से अपने अपने भू-भाग पर अधिकतम नकदी फसल उगाने को कहते थे । नकदी फसल का तात्पर्य यंहा – गन्ना,अफीम,कॉफी,चाय, सूरा, कपास इत्यादि जिसे हम खुद के लिए ज्यादा लाभ नहीं प्राप्त कर सकते जब तक इस फसल को बेचा ना जाए। अंग्रेज इस नकदी फसलों को अपने कच्चे माल की आपूर्ति के लिए भारतीयों से कम दाम में खरीदते तथा इसे अपने देश में तैयार कर वस्तुओं को ऊंचे दाम पर भारतीयों को बेच देते थे । जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ज्यादा प्रभावित हुई और धीरे- धीरे लोग से दूर होने लगे अंग्रेजों की नीतियों की वजह से उस समय भारतीय हस्तकला उद्योग पूरी तरह से बंद हो गया था|
निम्न स्तरीय आर्थिक विकास – अंग्रेजों के समय हमारे भारत की अर्थव्यवस्था एक औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी।
औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था (Colonial economy) से तात्पर्य –
किसी दूसरे देश की अर्थव्यवस्था को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से है। भारत में औपनिवेशिकअर्थव्यवस्था 1757AD में प्लासी की लड़ाई के साथ शुरू हुई, जो स्वतंत्रता तक विभिन्न चरणों में जारी रही।हमारी अर्थव्यवस्था अंग्रेजी सरकार के हाथों में थी परंतु अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का उपयोग किया पर उनके पुनर्निर्माण तथा विकास के बारे में कभी नहीं सोचा ।
पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था की ओर किसी ने सबका ध्यान खींचा तो वह थे दादा भाई नरौजी सर्वप्रथम पारसी दादाभाई नौरोजी अपनी पुस्तक “Poverty And Un-British Rule In India” लिखी। जिसमें उन्होंने 1867- 68 बताया कि भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय Rs20 प्रति व्यक्ति थी । इसके बाद लॉर्ड कर्जन 1901 में प्रति व्यक्ति आय की गणना कर Rs30 प्रति व्यक्ति बताया तथा डॉक्टर V. K R V Rao मैं 1931-32 मैं Rs62 प्रति व्यक्ति बताया । 1944- 46 में प्रति व्यक्ति आय Rs204 प्रति व्यक्ति थी
Achhi post banai ho