Sahitya Manch : गौतम गोरखपुरी की ग़ज़लें
ग़ज़ल_1
दर्द हमको दे जाती हो किसके लिए
जान इतना सताती हो किसके लिए
गर कोई और है तो बता दो मुझे
हमसे बातें बनाती हो किसके लिए
भटकता हूं मैं अब जुगुनुओ की तरह
चांद बन के यूं आती हो किसके लिए
हमको ये सब नहीं देखने को मिला
तुम ये बिंदिया लगाती हो किसके लिए
दिन गुजरता नहीं था कभी देखे बिन
अब यूं नजरें छुपाती हो किसके लिए
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ग़ज़ल_2
मुझको तेरी उल्फत मिले और कुछ भी नहीं,
तेरे दिल पर कुव्वत मिले और कुछ भी नहीं।
गर मुझसे जग दूर हो तो होने दे उसे,
पर तू मेरे कुर्बत मिले और कुछ भी नहीं।
दुनिया तुझकों लाख बुरा कहने लगे पर,
दुनिया में तू सब्कत मिले और कुछ भी नहीं।
इतना तो तुम करना कि कोई कुछ कहे ना,
दो लोगों में इज़्ज़त मिले और कुछ भी नहीं।
गर अपने तुझ से हसीं कर दे ठीक है पर,
तेरा अच्छा निय्यत मिले और कुछ भी नहीं।
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ग़ज़ल_3
तेरा दर्शन हुआ़ जबसे बजे कंगन तुम्हारे बिन
मेरी धड़कन नहीं होती हैं अब मद्धम तुम्हारे बिन
जरा सा मुस्कुरा कर कल मुझे तुम बात क्या कर ली
कि कुछ अच्छा नहीं लगता मेरी हमदम तुम्हारे बिन
बिना महफ़िल के बैठू तो तेरा ही ख्वाब आता है
मेरा कटता नहीं जानम अकेलापन तुम्हारे बिन
ये दुनिया लाख कोशिश भी अगर कर ले मेरी धड़कन
किसी से बध नहीं सकता मेरा बंधन तुम्हारे बिन
दिखाकर मैं जनम पत्री तुझे दुल्हन बनाऊंगा
मेरा आंगन पड़ा हैं यार खालीपन तुम्हारे बिन
मेरा मैसेज पढ़ करके तेरा मैसेज ना आना
मोहब्बत लगता है मेरा अधूरापन तुम्हारे बिन
अगर ऐसे ही रूठोगी ज़माना तान मारेगा
बता कैसे कटेगा फिर मेरा जीवन तुम्हारे बिन
मोहब्बत हो गई तुमसे सनम बातें हकीकत हैं
बता अब फिर कहा जाए तेरा गौतम तुम्हारे बिन
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गौतम गोरखपुरी
बभनौली,बेलघाट
जिला गोरखपुर
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साहित्य मंच: The Praman
संदीप राज़ आनंद
(साहित्य संपादक)
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