Sahitya Manch —-
साहित्य मंच -: जितेंद्र तिवारी की ग़ज़लें
ग़ज़ल_1
सब तय है कब आना है कब जाना है
या’नी हमको बस किरदार निभाना है
इक पागल की नज़रों से गर देखो तो
दुनिया का मतलब ही पागलख़ाना है
उसने तकिये से बोला तुम जाओ अब
इनका शाना ही मेरा सिरहाना है
सबकी आँखों के अंदर बीनाई है
उसकी आँखों के अंदर मयख़ाना है
कल जब आँखों ने इक चेहरे को देखा
दिल बोला ये तो जाना पहचाना है
दिल मिलना तो दूजा कारण होता है
पहला कारण नज़रों का टकराना है
——————————————–
ग़ज़ल_2
जिसके अंदर थोड़ा भी शैतान नहीं
दुनिया में ऐसा कोई इन्सान नहीं
क्या पूछा तुम बिन ज़िंदा रह पाउँगा
कितनी बार कहा है मेरी जान नहीं
उस इंसाँ से मिलकर मैंने ये जाना
मुझको सच में इंसाँ की पहचान नहीं
घर की बातें घर के अंदर रहती हैं
मतलब घर की दीवारों के कान नहीं
किसने पहले आई लव यू बोला था
सच बोलूँ तो मुझको बिल्कुल ध्यान नहीं
यार तलफ़्फ़ुज़ पर भी थोड़ा काम करो
ख़ान कहा जाता है बेटा खान नहीं
अश्क़ों से तहरीरें करनी पड़ती हैं
शा’इर होना इतना भी आसान नहीं
परिचय:–
जितेन्द्र तिवारी, ग्वालियर(म.प्र) के निवासी हैं तथा पेशे से एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। हिंदी एवं उर्दू में ग़ज़ल लिखने का शौक रखते हैं। विगत कुछ वर्षों में दिल्ली, बैंगलोर सहित अन्य शहरों के कई आयोजनों में काव्य-पाठ कर चुके हैं। उनकी ग़ज़लों का प्रकाशन रेख़्ता पर भी हो चुका है। इसके अलावा दैनिक भास्कर, अमर उजाला सहित अन्य समाचार पत्रों में भी उनकी ग़ज़लें प्रकाशित हो चुकी हैं |
_______________________________
संदीप राज़ आनंद
(साहित्य संपादक)
The Praman
साहित्य मंच-अमर’ की चुनिंदा रचनाएँ
साहित्य मंच सावन शुक्ला की ग़ज़लें
Sahitya manch Sahitya manch Sahitya manch Sahitya manch Sahitya manch