साहित्य मंच-अमर’ की चुनिंदा रचनाएँ
गिरोह उनका हमारी ग़ज़लें हमेशा ख़ारिज करेगा लेकिन ।
नये ज़माने के शाइरों में उन्हें हमारे निशाँ मिलेंगे ।
किसे पता है कि किस जनम में कहाँ के बिछड़े कहाँ मिलेंगे।
किसी से वादा नहीं किये हम यहाँ मिलें या वहाँ मिलेंगे ।
कहे है मनवा हमार हमसे की जब भी दिनकर को ढलते देखूँ।
वहीँ पे हम भी मिलेंगे शायद जहाँ धरा आसमाँ मिलेंगे ।
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किसी के इश्क़ में हम ख़ूब टूटे ।
किसी के इश्क़ ने हमको सँवारा ।।
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जो हुआ था सो हुआ तुम ठीक हो ?
छोड़िये शिकवा गिला तुम ठीक हो ?
हाल दुनिया से हमारा पूछियो ।
मै कहूंगा क्या भला तुम ठीक हो?
यार जो भी थे किनारा कर लिये ।
कह रहे सब बावला तुम ठीक हो ?
फ़ोन करके बोलना था अलविदा ।
फ़ोन लगते ही कहा तुम ठीक हो ?
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हम जैसे तो जनगणना के खातिर हैं,
हम जैसों से कौन मुहब्बत करता है।
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लबों पे लब रखे हैं बेख़ुदी में ।
हम इक दूजे का चरबा कर रहे हैं ।
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सिर्फ़ मिसरे कमाल होते हैं ।
कोई शायर बड़ा नहीं होता ।
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बिछड़ कर आप से मरना नहीं था ।
इसी अवसाद में ग़ज़लें कही हैं ।
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वफ़ा के बदले वफ़ा की चाहत करोगे तुमको भी ग़म मिलेंगे।
तमाम वादे करेंगे लेकिन निभाने वाले ही कम मिलेंगे ।
कोई बनेगा ख़ुदा सरीखा कोई बनेगा अदीब लेकिन ।
गँवार लोगों की पहली सफ में ज़हीन लोगों को हम मिलेंगे।
दुःखों को दिल में समेट करके तमाम चेहरे हैं रोज़ हँसते ।
क़रीब जाके निहारियेगा तो कोर नयनों के नम मिलेंगे ।
अभी तलक है किसी के आने की चाह दिल में सो जी रहे हैं।
बिछड़ रहे थे गले से लग के कहा था उसने की हम मिलेंगे ।
यही दिलासा दिया हमेशा मिलन की बातों पे उस परी ने ।
अभी नहीं हम मिलेंगे पक्का कि जब रज़ाई व ज़म मिलेंगे ।
अभी चले हैं हमारी साँसे अभी जहाँ को ख़बर नहीं है ।
पढ़ेगी दुनिया हमारी ग़ज़लें सो हम जहाँ से ख़तम मिलेंगे ।
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किसी दिन आजमाएगी मुहब्बत ।
किसी दिन ज़ख्म में काँटे चुभेंगे ।।
किसी दिन भूल जाएँगे तुम्हें भी ।
किसी दिन मौत से आगे बढ़ेंगे ।।
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तुम्हारा फोन नम्बर चाहते हैं
अगर वाज़िब लगे तो भेज देना
अमरजीत यादव ‘अमर’
बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)
संदीप राज़ आनंद
साहित्य संपादक
The Praman
बहुत सुंदर रचनाएं । हार्दिक बधाई।