Sahitya manch
साहित्य मंच – धीरज तिवारी के गीत
गीत_1
हाय इस निर्मम धरा पर
दौड़ता दिन रात रे मन !
स्वार्थ का पर्याय मानव
हो चुका है इस जगत में
स्वार्थ कैसे सिद्ध होगा
फिर रहा है इस जुगत में
कामना की सिद्धि होगी
काम को दे त्याग रे मन!
हाय इस निर्मम धरा पर
दौड़ता दिन रात रे मन!
हर हृदय है अश्रु सिंचित
अब न कोई पुष्प सुरभित
विश्व की व्याकुल व्यथा में
राम जी की इस कथा में
इस तिमिर की तुमुलता में
तू किरण की गात रे मन !
हाय इस निर्मम धरा पर
दौड़ता दिन रात रे मन !
इस निशा की तारिकाएं
नव बधू सी सज उठेंगी
भोर का अभिषेक करने
रागिनी भी बज उठेंगी
इस अँधेरी रात के ही
बाद है सु-प्रभात रे मन!
हाय इस निर्मम धरा पर
दौड़ता दिन रात रे मन !
__________________________________
गीत_2
कितनी आसान मोहब्बत है?
कितना आसाँ मर जाना है?
मन हार चुके,,,उठ थके पथिक,
तुझको अपने घर जाना है।
जा देख! देहरी पर तेरी,
आशाएं खिल खिल करती हैं।
नन्हें नन्हें पग पर चलती,
मुस्कानें खूब सँवरती हैं।
तेरा उदास चेहरा देखा,तो उन सबको डर जाना है।
मन हार चुके,,,उठ थके पथिक, तुझको अपने घर जाना है।
बूढ़ी आंखें हैं रँगहीन,
अनुभव के चित्र सजाती हैं।
द्वारे पर हल्की सी ‘ठक’ से
आशा तरंग बज जाती है।
उम्मीदों की इस अंजुलि में,क्या तुमको विष भर जाना है?
मन हार चुके,,,उठ थके पथिक, तुझको अपने घर जाना है।
__________________________________
गीत_3
एक तुम्हारी खातिर देखो
फिरते हैं कैसे मतवाले…
अपनी आँखों के मोती भी
हम संभाल के रखने वाले
रहते थे पुष्पों के जैसे
खिले खिले ये अधर हमारे
और हमारे दोनों नयना
जैसे कोई नभ के तारे
उठता जब सैलाब हृदय में
कैसे पलकें बांध बना लें!!
अपनी आंखों के मोती भी
हम संभाल कर रखने वाले
हाँ होते थे प्रिये कभी हम
जैसे दो हंसों का जोड़ा
होगा याद तुम्हें भी प्रियतमा
कैसे नेह का धागा तोड़ा
रहती है हर घड़ी विकलता
जीवन की पतवार संभाले!!
अपनी आंखों के मोती भी
हम संभाल के रखने वाले!
हाय गयीं तुम दूर निधे क्यों
कैसे इस मन को समझाऊं
कोई तो उपाय बतला दो
कैसे मैं खुद को बहलाऊँ
द्वार आज भी तकती चौखट
तरस गए नयनों के प्याले!!
अपनी आंखों के मोती भी
हम संभाल कर रखने वाले!
__________________________________
धीरज तिवारी
(दादा इलाहाबादी)
ग्राम- हरनहाई ( शाहजहाँपुर) उ.प्र.
—————————–
साहित्य मंच: The Praman
संदीप राज़ आनंद
(साहित्य संपादक)
साहित्य मंच-अमर’ की चुनिंदा रचनाएँ
Sahitya manch Sahitya manch Sahitya manch Sahitya manch