Sahitya Manch : गौतम गोरखपुरी की ग़ज़लें
ग़ज़ल_1
कोई भी नहीं है हमारा सिवा इन किताबों के
मेरी ज़िन्दगी का सहारा सिवा इन किताबों के
ये भी एक सच है कि उसके बिछड़ जाने के बाद
किसी को नहीं मैं पुकारा सिवा इन किताबों के
गई है संवर अब मेरी जिंदगी पर किसी को भी
करूंगा नहीं मैं सितारा सिवा इन किताबों के
कि जब टूटा था मुझपे यारों दुक्खों का समन्दर तो
सभी ने किया था किनारा सिवा इन किताबों के
मेरे अपने ही दोस्तों ने हँसा था और फिर मुझको
यूं बातों ही बातों में मारा सिवा इन किताबों के
कि अब पूछते फिरते हैं हाल मेरा सभी लोग
नहीं पहले सोचा बिचारा सिवा इन किताबों के
मेरी बात को मान ले अबसे संभल जा गौतम तू
कोई भी नहीं है तुम्हारा सिवा इन किताबों के
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ग़ज़ल_2
चुनरी ओढ़ गया कोई
हमको छोड़ गया कोई
कसमें सात जनम की थी
कसमें तोड़ गया कोई
मुझसे झूठ कि गैरों से
बंधन जोड़ गया कोई
जब मालूम हुआ मुझको
दिल झिंझोड़ गया कोई
तू बदनाम हुआ साकी
सर को फोड़ गया कोई
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ग़ज़ल_3
कोई मुझको दे मोहब्बत ये तरीका क्यों करें हम
यूं मुहब्बत के लिए मक्का मदीना क्यों करें हम
क्यों घटाएं जिंदगी के दिन किसी के प्यार खातिर
यार ख़ुद को फ़रवरी का भी महीना क्यों करे हम
लोग मुझको भी बुरा कहने लगें इज्जत भी ना दे
अपना रिश्ता लोगों से ऐसे बुरीदा क्यों करें हम
लोग मुझसे खुश रहे हरदम यही चाहत है मेरी
लोगों में बेकार का अपना चकीदा क्यों करें हम
पार हो जाएंगे दरिया छोड़ देंगे फिर अकेले
ऐसे लोगों के लिए खुद को सफीना क्यों करें हम
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गौतम गोरखपुरी
बभनौली,बेलघाट
जिला गोरखपुर
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साहित्य मंच: The Praman
संदीप राज़ आनंद
(साहित्य संपादक)
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